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पप्पू झांसेबाज
झांसे
में
किसी
के,
वो
आता
नहीं
था
वो
पप्पू
ही
था,
जो
नहाता
नहीं
था
पापा
भी
समझाते,
समझाते
हारे
दोस्तों
ने
ताने
भी,
जी
भर
के
मारे
हमेशा
बच
निकलता,
वो
टकराता
नहीं
था
वो
पप्पू
ही
था,
जो
नहाता
नहीं
था
एक
दिन
गब्बर
भी
बोल,
करके
ठिठोली -२
बता
कब
है
होली,
बता
कब
है
होली
होली
के
दिन
हुआ,
जब
बिलकुल
सवेरा
सुबह
ही
सुबह , सबने पप्पू
को
घेरा
बड़े
दिन
हुए ,
तुमको
बचते
बचाते
कहो
क्या
है
कारण,
नहीं
क्यों
नहाते
पानी
की
टंकी
में,
कई
रंगों
को
मिलाएं
आओ
चल
के
पप्पू
को ,
इसमें
डुबायें
बिगड़
गया
पप्पू ,
दोनों
हाथों
को
जोड़ा
कैसे
लोग
हो
तुम ,
शर्म
करो
थोडा
पानी
की
किल्लत
है ,
रास्ट्र
सुखा
पड़ा
है
तुम्हे
चाव
होली
का,
फिर
भी
पड़ा
है
हजारों
गाँव
में ,
भयंकर
है
सुखा
हमारा
अन्नदाता ,
किसान
खुद
ही
है
भूखा
हमेशा
ही
करते
हो,
क्रिकेट
की
बातें
क्रिकेट
के
स्कोरों
को ,
ओढें
या
चाटें
आओ
चर्चा
करें,
कैसे
पानी
बचाएं -२
समझें
पानी
की
कीमत,
और
सबकों
बताएं
बात
सुन
पप्पू
की,
अपनी
हिम्मत
थी
टूटी
पर
ट्रिक
एक
लगाई ,
हमने
बिलकुल
अनूठी
बोले
पानी
को
छोड़ो ,
हम
से
रंग
तो
लगवाओ
बहुत
दिनों
से
बचे,
होली
पर
तो
नहाओ
बात
रंगों
की
सुन,
पप्पू
था
जोश
में
जो
न
सोचा
कभी ,
कह
गया
होश
में
बस
एक
रंग
ही ,
मुझको
प्यारा
लगे
सारे
रंगों
से
मुझको ,
वो
न्यारा
लगे
ये
रंग
है
निराला,
जो
दिखता
नहीं
किसी
बाजार
में
भी,
ये
बिकता
नहीं
अगर
है
वो
ही
रंग
तो
लगा
दो
मुझे
रंग "बसंती"
से
चाहे ,
नहा
दो
मुझे
रंग
बसंती
लगा,
जब
भगत
सिंह
चला
देश
के
दुश्मनों,
का
था
सुखा
गला
रंग
बसंती,
शिवाजी
की
पहचान
है
ये
उसी को चढ़ा,
जिसमें
स्वाभिमान
है
सुन
के
बातें
बड़ी,
दोस्त
हैरान
थें
पप्पू
फिर
बच
गया ,
वो
परेशान
थे
क्योंकि
गीत
देश
प्रेम
का ,
उनको
आता
नहीं
था
वो
पप्पू
ही
था,
जो
नहाता
नहीं
था
झांसे
में
किसी
के,
वो
आता
नहीं
था
दिनांक
- 23
मार्च
2013
डायरेक्टर- "माँ
सरस्वती
देवी
जी "
स्पोंसर - "बाबा
राम
देव
जी "
सच में मज़ा आ गया आपकी कविता पढ़कर हास्य ,व्यंग ,देशप्रेम के साथ -साथ बहुत कुछ है आपकी कविता में भगवन आपका भला करे जय भारत
ReplyDeleteGood one Ravinder.....Lage rao
ReplyDeleteati uttam
ReplyDeleteExtraordinary poem.
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