Thursday, February 20, 2020

वालिद की वफ़ात पर - निदा फाज़ली

" वालिद(पिता) की वफ़ात(मृत्यु) पर " - पिता को समर्पित कविता


तुम्हारी कब्र पर
मैं फातिहा पढ़ने नहीं आया

मुझे मालूम था
तुम मर नहीं सकते
तुम्हारी मौत की सच्ची ख़बर जिसने उड़ाई थी
वो झूठा था
वो तुम कब थे
कोई सूखा हुआ पत्ता हवा से हिल के टूटा था
मेरी आँखें
तुम्हारे मंजरों में कैद हैं अब तक
मैं जो भी देखता हूँ
सोचता हूँ
वो - वही है
जो तुम्हारी नेकनामी और बदनामी की दुनिया थी
कहीं कुछ भी नहीं बदला
तुम्हारे हाथ
मेरी उँगलियों में साँस लेते हैं
मैं लिखने के लिए
जब भी कलम काग़ज़ उठाता हूँ
तुम्हें बैठा हुआ अपनी ही कुर्सी में पाता हूँ
बदन में मेरे जितना भी लहू है
वो तुम्हारी
लग्ज़िशो नाकामियों के साथ बहता है
मेरी आवाज़ में छुप कर
तुम्हारा ज़हन रहता है
मेरी बीमारियों में तुम
मेरी लाचारियों में तुम
तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिक्खा है
वो झूठा है
तुम्हारी कब्र में मैं दफ्न हूँ
तुम मुझ में ज़िन्दा हो
कभी फ़ुर्सत मिले तो फातिहा पढ़ने चले आना

-- निदा फाज़ली

वालिद  - पिता 
वफ़ात - मृत्यु 
फातिहा - मृत व्यक्तियों की आत्मा की शांति  के लिए कब्र या मजार पर पढ़ी जाने वाली आयत 
मंजर   - द्रश्य 
लग्ज़िशो - विलासिता




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