'क' से कोयल कूक रही, 'ख' से खरगोश खड़ा है...
'ग' से गाय रंभाती है, 'घ' से घड़ा भरा है...
'ङ' खाली से कुछ न शुरू हो, देखो, यहीं पड़ा है...
'च' से चंदा मामा चमका, 'छ' से छप्पर छाया...
'ज' से जलेबी मीठी-मीठी, 'झ' झंडा फहराया...
'ञ' खाली से भी न बने कुछ, मैं तो अब चकराया...
'ट' से लाल टमाटर खाया, 'ठ' से ठोकर खाई...
'ड' से डमरू बजता, भैया, 'ढ' ढोलक बजवाई...
'ण' से भी कुछ शुरू न होता, है अजीब यह भाई...
'त' से तीर रहे तरकश में, 'थ' से थरमस बनता...
'द' से दादा-दादी होते, 'ध' से धनुष है तनता...
जोर से बजता 'न' से नगाड़ा, बच्चा-बच्चा सुनता...
'प' से उड़ती पतंग हवा में, 'फ' से खिलते फूल...
'ब' से बकरी मैं-मैं करती, जब भी उड़ती धूल...
'भ' से भालू, 'म' से मछली, इनको भी मत भूल...
'य' से यज्ञ किया साधु ने, 'र' से रस्सी बांधी...
'ल' से लोटा होता, 'व' से वायु की चलती आंधी...
'श' से शलगम उगती है, 'ष' से षट्कोण है बनता...
'स' से सरगम बने, जो 'ह' से हारमोनियम बजता...
'क्ष' से क्षत्रिय घूमे लेकर, हाथ में 'त्र' से त्रिशूल...
'ज्ञ' से ज्ञानी जो भी पढ़ाएं, कभी न उसको भूल...
लेखक : विवेक रस्तोगी जी
'ग' से गाय रंभाती है, 'घ' से घड़ा भरा है...
'ङ' खाली से कुछ न शुरू हो, देखो, यहीं पड़ा है...
'च' से चंदा मामा चमका, 'छ' से छप्पर छाया...
'ज' से जलेबी मीठी-मीठी, 'झ' झंडा फहराया...
'ञ' खाली से भी न बने कुछ, मैं तो अब चकराया...
'ट' से लाल टमाटर खाया, 'ठ' से ठोकर खाई...
'ड' से डमरू बजता, भैया, 'ढ' ढोलक बजवाई...
'ण' से भी कुछ शुरू न होता, है अजीब यह भाई...
'त' से तीर रहे तरकश में, 'थ' से थरमस बनता...
'द' से दादा-दादी होते, 'ध' से धनुष है तनता...
जोर से बजता 'न' से नगाड़ा, बच्चा-बच्चा सुनता...
'प' से उड़ती पतंग हवा में, 'फ' से खिलते फूल...
'ब' से बकरी मैं-मैं करती, जब भी उड़ती धूल...
'भ' से भालू, 'म' से मछली, इनको भी मत भूल...
'य' से यज्ञ किया साधु ने, 'र' से रस्सी बांधी...
'ल' से लोटा होता, 'व' से वायु की चलती आंधी...
'श' से शलगम उगती है, 'ष' से षट्कोण है बनता...
'स' से सरगम बने, जो 'ह' से हारमोनियम बजता...
'क्ष' से क्षत्रिय घूमे लेकर, हाथ में 'त्र' से त्रिशूल...
'ज्ञ' से ज्ञानी जो भी पढ़ाएं, कभी न उसको भूल...
लेखक : विवेक रस्तोगी जी
very nice
ReplyDeletejai ho
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