Hari Om Pawar from Mahi Singh on Vimeo.
भूख
मेरा गीत चाँद है न चांदनी है आजकल, ना किसी के प्यार की ये रागिनी है आजकल|
मेरा गीत हास्य भी नहीं है माफ़ कीजिये, साहित्य का भाष्य भी नहीं है माफ़ कीजिये|
मै गरीब के रुदन के आंसुओ की आग हूँ, भूख के मजार पर जला हुआ चिराग हूँ|
मेरा गीत आरती नही है राज पट की, जगमगाती आत्मा है सोये राज घट की|
मेरा गीत झोपडी के दर्दो की जुबान है, भुखमरी का आइना है, आंसू का बयान है|
भावना का ज्वार भाटा जिये जा रहा हू मै, क्रोध वाले आंसुओ को पिए जा रहा हू मै|
मेरा होश खो गया है लहू के उबाल में, कैदी होकर रह गया हू, मै इसी सवाल में|
आत्महत्या की चिता पर देख कर किसान को, नींद कैसे आ रही है देश के प्रधान को||
सोच कर ये शोक शर्म से भरा हुआ हू मै, और मेरे काव्य धर्म से डरा हुआ हू मै |
मै स्वयं को आज गुनेहगार पाने लगा हू, इसलिए मै भुखमरी के गीत गाने लगा हू|
गा रहा हू इसलिए की इन्कलाब ला सकूं | झोपडी के अंधेरों में आफताब ला सकूं|
इसीलिए देशी और विदेशी मूल भूलकर, जो अतीत में हुई है भूल, भूल कर|
पंचतारा पद्धति का पंथ रोक टोक कर, वैभवी विलासिता को एक साल रोक कर|
मुझे मेरा पूरा देश आज क्रुद्ध चाहिए, झोपडी की भूख के विरुद्ध युद्ध चाहिए|
मेहरबानों भूख की व्यथा कथा सुनाऊंगा, महज तालियों के लिए गीत नहीं गाऊंगा|
चाहे आप सोचते हो ये विषय फिजूल है, किंतु देश का भविष्य ही मेरा उसूल है|
आप ऐसा सोचते है तो भी बेकसूर है, क्योकिं आप भुखमरी की त्रासदी से दूर है|
आपने देखि नही है भूखे पेट की तड़प , भूखे पेट प्राण देवता से प्राण की झड़प|
मैंने ऐसे बचपनो की दास्ताँ कही है, जहाँ माँ की सुखी छातियों में दूध नही है|
जहाँ गरीबी की कोई सीमा रेखा ही नही, लाखो बच्चे है जिन्होंने दूध देखा ही नहीं|
शर्म से भी शर्मनाक जीवन काटते है वे, कुत्ते जिसे चाट चूके, झुटन चाटते है वे|
भूखा बच्चा सों रहा है आसमान ओढ़ कर, माँ रोटी कम रही है, पत्थरों को तोड़ कर|
जिनके पाँव नंगे है,और तार तार है, जिनकी सांस सांस साहूकारों की उधार है|
जिनके प्राण बिन दवाई मृत्यु के कगार है, आत्महत्या कर रहे है भूख के शिकार है |
बेटियाँ जो शर्मो हया होती है जहान की, भूख ने तोडा तो वस्तु हो गई दुकान की|
भूख आत्माओ का स्वरूप बेच देती है, निर्धनों की बेटियों का रूप बेच देती है|
भूख कभी कभी ऐसे दांव पेंच देती है, सिर्फ 2000 में माँ बेटा बेच देती है|
भूख आदमी का स्वाभिमान तोड़ देती है, आन बान शान का गुमान तोड़ देती है|
भूख सुदमाओ का अभिमान तोड़ देती है, महाराणा प्रताप की भी आन तोड़ देती है|
किसी किसी मौत पर धर्म कर्म भी रोता है,क्योंकि क्रिया क्रम का भी पैसा नहीं होता है|
घरवाले गरीब आंसू गम सहेज लेते है, बिना दाह संस्कार मुर्दा बेच देते है|
थूक कर धिक्कारता हू , मै ऐसे विकास को, जो कफ़न भी देना पाए गरीबों की लाश को|
भूख का निदान झूटे वायदों में नही है, सिर्फ पूंजीवादियो के फायदे में नही है|
भूख का निदान कर्णधारों से नही हुआ, गरीबी हटाओ जैसे नारों से नही हुआ|
भूख का निदान प्रशाशन का पहला धर्म है, गरीबों की देखभाल सिंहासन का धर्म है|
इस धर्म की पलना में जिस किसी से चुक हो, उस के साथ मुजरिमों के जैसा ही सलूक हो|
भूख से कोई मरे ये हत्या के समान है, हत्यारों के लिए मृत्युदंड का विधान है|
कानूनी किताबो में सुधर होना चाहिए, मौत का किसी को जिम्मेदार होना चाहिए|
भूखो के लिए नया कानून मांगता हु मै, समर्थन में जनता का जूनून मांगता हु मै|
ख़ुदकुशी या मौत का जब भुखमरी आधार हो, उस जिले का जिलाधीश सीधा जिम्मेदार हो|
वह का एम् एल ए , एम् पी भी गुनेहगार है, क्योंकि ये रहनुमा चुना हुआ पहरेदार है|
चाहे नेता अफसरों की लॉबी आज क्रुद्ध हो, हत्या का मुकदमा इन्ही तीनो के विरुद्ध हो|
अब केवल कानून व्यवस्था को रोक सकता है, भुखमरी से मौत एकदिन में रोक सकता है|
आज से ही संविधान में विधान कीजये, एक दो कोल्लेक्टरो को फंसी तंग दीजिये|
कवि
: हरी ओम पवार
मैं भी गीत सुना सकता हूँ शबनम के अभिनन्दन के
ReplyDeleteमै भी ताज पहन सकता हूँ नंदन वन के चन्दन के
लेकिन जब तक पगडण्डी से संसद तक कोलाहल है
तब तक केवल गीत पढूंगा जन-गण-मन के क्रंदन के
जब पंछी के पंखों पर हों पहरे बम के, गोली के
जब पिंजरे में कैद पड़े हों सुर कोयल की बोली के
जब धरती के दामन पार हों दाग लहू की होली के
कैसे कोई गीत सुना दे बिंदिया, कुमकुम, रोली के
मैं झोपड़ियों का चारण हूँ आँसू गाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||
कहाँ बनेगें मंदिर-मस्जिद कहाँ बनेगी रजधानी
मण्डल और कमण्डल ने पी डाला आँखों का पानी
प्यार सिखाने वाले बस्ते मजहब के स्कूल गये
इस दुर्घटना में हम अपना देश बनाना भूल गये
कहीं बमों की गर्म हवा है और कहीं त्रिशूल चलें
सोन -चिरैया सूली पर है पंछी गाना भूल चले
आँख खुली तो माँ का दामन नाखूनों से त्रस्त मिला
जिसको जिम्मेदारी सौंपी घर भरने में व्यस्त मिला
क्या ये ही सपना देखा था भगतसिंह की फाँसी ने
जागो राजघाट के गाँधी तुम्हे जगाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||
एक नया मजहब जन्मा है पूजाघर बदनाम हुए
दंगे कत्लेआम हुए जितने मजहब के नाम हुए
मोक्ष-कामना झांक रही है सिंहासन के दर्पण में
सन्यासी के चिमटे हैं अब संसद के आलिंगन में
तूफानी बदल छाये हैं नारों के बहकावों के
हमने अपने इष्ट बना डाले हैं चिन्ह चुनावों के
ऐसी आपा धापी जागी सिंहासन को पाने की
मजहब पगडण्डी कर डाली राजमहल में जाने की
जो पूजा के फूल बेच दें खुले आम बाजारों में
मैं ऐसे ठेकेदारों के नाम बताने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||
कोई कलमकार के सर पर तलवारें लटकाता है
कोई बन्दे मातरम के गाने पर नाक चढ़ाता है
कोई-कोई ताजमहल का सौदा करने लगता है
कोई गंगा-यमुना अपने घर में भरने लगता है
कोई तिरंगे झण्डे को फाड़े-फूंके आजादी है
कोई गाँधी जी को गाली देने का अपराधी है
कोई चाकू घोंप रहा है संविधान के सीने में
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में
कोई ढाँचे का गिरना यू. एन. ओ. में ले जाता है
कोई भारत माँ को डायन की गाली दे जाता है
लेकिन सौ गाली होते ही शिशुपाल कट जाते हैं
तुम भी गाली गिनते रहना जोड़ सिखाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||
जब कोयल की डोली गिद्धों के घर में आ जाती है
तो बगुला भगतों की टोली हंसों को खा जाती है
इनको कोई सजा नहीं है दिल्ली के कानूनों में
न जाने कितनी ताकत है हर्षद के नाखूनों में
जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है
तब माँ की अर्थी बेटों को भारी लगने लगती है
जब-जब भी जयचंदों का अभिनन्दन होने लगता है
तब-तब साँपों के बंधन में चन्दन रोने लगता है
जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते हैं
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते हैं
सिंहों को 'म्याऊं' कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है
बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता दिल्ली में है
कहते हैं यदि सच बोलो तो प्राण गँवाने पड़ते हैं
मैं भी सच्चाई गा-गाकर शीश कटाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||
'भय बिन होय न प्रीत गुसांई' - रामायण सिखलाती है
राम-धनुष के बल पर ही तो सीता लंका से आती है
जब सिंहों की राजसभा में गीदड़ गाने लगते हैं
तो हाथी के मुँह के गन्ने चूहे खाने लगते हैं
केवल रावलपिंडी पर मत थोपो अपने पापों को
दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को
अपने सिक्के खोटे हों तो गैरों की बन आती है
और कला की नगरी मुंबई लोहू में सन जाती है
राजमहल के सारे दर्पण मैले-मैले लगते हैं
इनके ख़ूनी पंजे दरबारों तक फैले लगते हैं
इन सब षड्यंत्रों से परदा उठना बहुत जरुरी है
पहले घर के गद्दारों का मिटना बहुत जरुरी है
पकड़ गर्दनें उनको खींचों बाहर खुले उजाले में
चाहे कातिल सात समंदर पार छुपा हो ताले में
ऊधम सिंह अब भी जीवित है ये समझाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||
Best... in Best
Deleteश्री पंवार जी,
Deleteआपको कोटि कोटि प्रणाम|आपकी "भूखमरी" कविता पढ़ कर देश की इस व्यवस्था पर मेरे मन में भी सैकड़ो सवाल उठने लगे है ओर मुझे भी लिखने के लिए मजबूर कर दिया है वैसे तो मै आपका शुरू से फेन रहा हूँ ओर कई बार आपसे गाज़ियाबाद में मिल चूका हूँ ओर कवि नगर में जब भी अठ्ठास कवि सम्मलेन में आते है मै आपको अवश्य सुनता हूँ पहले मै श्रृंगार तथा विरह रस में लिखता था पर अब मै देश की व्यवस्था ओर देश की परीस्थितियो ओर नेताओ के ऊपर लिख रहा हूँ.आजकल "प्रवक्ता" में लिख रहा हूँ जो रोजन्ना छाप रही है| मै आपके मिलना चाहता हूँ |कृपया कोई समय दे ताकि मै आपके दर्शन कर सकु | मै २००५ में स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक के रूप में सेवानिवृत हो चूका हूँ.और पिछले बीस वर्षो से लिख रहा हूँ.
भवदीय आपका
आर के रस्तोगी
मो 9971006425
ईमेल ramkrishan.rastogi@gmail.com
Sir apki ki kavita ko pad kar aur sun Kar bahut garve hota....
Deletegreat sir
Deleteआदरणीय प्रणाम
Deleteआपकी कविताये सुनकर मै बहुत ही प्रभावित हूँ महोदय आप मेरे आदर्श हैं
अजय यादव (उ.प्र. पुलिस)
KAVI VAR ME APNI AATMA SE AAPKO SAMRPIT KARTA HU
ReplyDeletemain guru ji (Hariom) k cahrno m naman karta hu
ReplyDeleteHiiiiiiiii......
DeleteAnkit Kya aapko bhi Poetry me Inturst Hai ?
Sir Aapko Salam Karta Hu. Svikar Kijiega.....
ReplyDeletehariom ji me apke bare me kya bolu mere pass sabdh nahi maf kijiye
ReplyDeletejaihind jai bharat
" TIRNGE TUJKO HUM NAMAN KARNE AAYE H "
ReplyDeleteTune kai sadiya dekhi
57 ki kranti dekhi
Aajadi ki ladai dekhi
Veero ki balidani dekhi
Balidani un veero ki, Hum yad karne aaye h
Tirnge tujko hum naman karne aaye h
JAISI MEHBOBA KO KAM AANE PE RUTHA DETE HO
ReplyDeleteRAM KA NAM TUM BADA JUTHA LETE HO
AUR TUMHE SOPI THI MAJDHAR HUMNE
JO KOI BHI BOLE TUM USE UTHA LETE HO
Vry nice line
Deletewoo kahe kar gaye the ki, abhi aaye..
ReplyDeletehum intizar na karte to kya karte
one of the great poet in whole of the world MR. HARIOM PAWAR JI
ReplyDeleteI SALUTE HIM...
Nice poem👍 and its written by such a great poet....
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ReplyDeletein kavitao ko padhne se hi sarir me Romanch jaag uthta hai.....aur jab hariom ji k mukh se sunne ko mile to.......Jwala dahak uthti hai...
ReplyDeletebest hindi poiem i also but new like this
ReplyDeleteHariom ji pawar me aapka abhari hu agr jivan rha to aapse jldi milunga bhi agr nhi mil ska to mujhe esa lgega jese mere teerth adhure reh gye
ReplyDeleteआदरणिय श्रद्धेय प्रणाम दीपावली की बहुत बहुत हार्दिक शुभ कामनाएँ
ReplyDeleteati uttam
ReplyDeleteYou are great sir....Aapse life me ek baar milna chahenge. ..
ReplyDeleteYou are great sir....Aapse life me ek baar milna chahenge. ..
ReplyDeleteYou are great sir....Aapse life me ek baar milna chahenge.
ReplyDeleteमें आपकी कविताएं काफी समय से सुनता ओर पड़ता आ रहा हूं इनमे सचाई है और मेरे जीवन का सिर्फ एक ही मकसद है सिर्फ सच बोलना ओर लिखना ओर सचाई के लिए जीना ओर मरना आपका में आभारी हूं आपके मार्ग दर्शन से जो ऊर्जा मिलती उससे ओर जोर सोर से में चोर को चोर कहने की हिमत बड़ जाती हैं
ReplyDeleteसर जी आप मेरे सबसे अच्छे कवि है आपको कोटि कोटि प्रणाम है
ReplyDeleteअच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteHi
ReplyDeleteVery nice sir
ReplyDeleteसलाम आपको सही लिखा हैं सर
ReplyDeleteये कविता सबसे पहले कब और कहाँ सुनाई गई कोई बता सकता है ? जिस इवेंट की वीडियो है ये कहाँ का है
ReplyDeleteमाननीय पवार जी मै आपकी कवताओं का कायल हूं कृपया मुझे आपकी रचित किसी पुस्तक का नाम बताएं जिसे मै पढ़ सकूं
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